Tuesday, 18 April 2017

माँ !

एक कविता माँ को समर्पित !!!

कभी कहीं ये आग की लपटो सी भावुक हो जाती है ।
कभी कभी ये अंतर्मन से भाव विभोर हो आती है ।
कभी न थकती, कभी न थमती सबला ऐसी नारी तू ।
ईश्वर से भी ऊँची पदवी रखती माँ हमारी तू ।

रात को न तू रात समझती, दिन तो जैसे ख़ाक है ।
तेरी मर्ज़ी के आगे मौसम की क्या औक़ात है ।
लपटों जैसी गरमी हो या सर्दी हो उस माघ की ।
हौसलों से भरी कहानी, तेरी दिन और रात की ।

ढूँढते हैं लोग अक्सर प्रेरणा संसार में ।
ढूँढते तो मिल ही जाती वो उसी परिवार में ।
फिर हताशाओं भरी न ज़िंदिगी महरूम हो ।
हर उदर एकलव्य की गुणगान में मशगूल हो ।

हर क़दम पर ढाल बनना है जिसकी सख़्सियत ।
नियति को भी बदल दे, है इसकी क़ाबिलियत ।
हर समय अहसास जिसका, ममता की गोद है ।
दुर्गा, सरस्वती माँ लक्ष्मी तू ख़ुद है ।

प्रस्तुति - अभिषेक सिंह

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